डॉक्टर भीमराव अंबेडकर बनाम महात्मा गांधी - जातिवाद के मुद्दे पर कौन सही था?

नमस्कार दोस्तों बाबासाहेब अंबेडकर और महात्मा गांधी दो बडे महान जाने माने फ्रीडम फाइटर्स थे। लेकिन क्या आप जानते हैं दोनों में एक बहुत ज्यादा असहमति और मतभेद हुई थी बहुत ही चर्चा हुई थी जातिवाद पर।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर बनाम महात्मा गांधी - जातिवाद के मुद्दे पर कौन सही था?

कौन यहां पर सही था और कौन यहां पर गलत। तो आज की इस ब्लाग में मैं आपके सामने बाबा साहब अंबेडकर के आईडियोलॉजी और उनके विचार प्रकट करना चाहूंगा आपके सामने।

चलिए जानते हैं:

आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ। उनका मूल नाम भीमराव था।
डॉक्टर अंबेडकर का जन्म महार कास्ट में हुआ था जो कि बचपन से ही उन्होने जातिवाद को बहुत ज्यादा सहा था और जब वह स्कूल जाते थे तो वह और उनके भाई इकलौते बच्चे थे जो कि दलित समाज से थे और उन्हें कहा जाता था कि वह घर से अपनी बोरी लेकर आए और उस पर बैठे और उन्हें पानी भी नहीं पीने दिया जाता था जहां पर सब बच्चों को पानी पीने के लिए परमिशन होती थी।

स्कूल वालों ने उनके लिए एक स्पेशल मटका रखा था और वह खुद भी मटके से पानी नहीं पी सकते थे स्कूल के पीऑन मटके से पानी निकालते और उनके हाथ पर डालते थे और जिन दिनों वह नहीं आते थे स्कूल, उन दिनों भीमराव और उनके भाई को प्यासा ही रहना पड़ता था।

पैसे की कमी की वजह से डॉक्टर अंबेडकर के भाई को अपनी पढाई अधूरी छोड़नी पड़ी डॉक्टर अंबेडकर ने कड़ी मेहनत करी पढ़ाई में और उन्हें स्कॉलरशिप मीटिंग महाराजा ऑफ़ बरोदा की तरफ से और वह कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने चली उसके बाद उन्होंने अपने डॉक्टरेट भी करी इकोनॉमिक्स से जोकि लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स लंदन में स्थित है।

फिर उन्होंने अपनी पढ़ाई करीब और कई सालो तक की। इस लेवल तक एजुकेशन मिलने के बाद उन्होंने अपनी लाइफ की हर एस्पेक्ट में कास्टीज्म को झेलना पड़ा और उन्हें जातिवाद से इस कदर नफरत थी कि वह हिंदू लोगों को गलत ठहराते थे। जो भी उनके साथ ऐसा व्यवहार करते थे और जो लोग उन्हें गलत ठहराते थे उनकी जाति की वजह से।

डॉक्टर अंबेडकर ने ना सिर्फ वोट सवाल उठाए बल्कि हिंदुइज्म पर भी और उन्होंने मुस्लिम समुदाय पर भी उन्होंने संस्कृत पढ़ी और उन्होंने वेदास को एक बकवास चीज बताया।

उनका मानना था कि जब तक एक कास्ट रहेगी तब तक एक आउटकास्ट रहेगा तो वह न सिर्फ जातिवाद के विरोध में थे बल्कि वह समाज से छुआछूत और अन्य चीजों को भी साफ करना चाहते थे।

दूसरी तरफ महात्मा गांधी एक रिलिजियस हिंदू थे उनकी ज्यादातर सिद्धांत सोशल थे वह सब हिंदू धर्म से आते थे वह किताबों को अपनी स्प्रिचुअल डिक्शनरी मानते थे और सही मायनों में रिलीजियस होने के नाते वे सभी धर्मों को और जातियों को इज्जत भी देते थे और उनके लिए अच्छे-अच्छे काम भी करते थे तो बड़ी ही संभावित बात है कि कोई भी रिलिजियस पर्सन उनसे नफरत नहीं करता था।

लेकिन इनका मानना था कि जातिवाद या फिर जाति हिंदू धर्म का एक संस्कृति का हिस्सा है जो चार वर्णों का सिस्टम है इनका मानना था कि वह नेचुरल है यानी कि प्राकृतिक है और उनका मानना था कि एक वर्ण को दूसरे वर्ग के ऊपर रखा जाएगा साथ ही उनका मानना था कि अस्पृश्यता हिंदुओं के लिए पाप था।

इसी कारण से सन 1932 में उन्होंने ऑल इंडिया एंटी अनटचेबिलिटी लीग की स्थापना की जिसे बाद में नाम दिया गया था, हरिजन सेवक संघ 1934 में उन्होंने केरला के हवाई कौन डिस्ट्रिक्ट में वायकोम सत्याग्रह भी लांच किया था जहां पर दलितों को डिस्क्रिमिनेट किया जा रहा था।
जहां पर बड़े-बड़े सोशल रिफॉर्मर जैसे कि पेरियार वगैरह ने भी हिस्सा लिया था 

तो यहां पर एक बड़ा क्लियर डिफरेंस देख सकते हो कि डॉक्टर अंबेडकर की सोच में और गांधी की सोच में कहां से अंतर आना शुरू हो गया। गांधी जी की जो विचार थे शुरुआत में वह कहीं ना कहीं आप को चोट पहुंचा सकते हैं और काफी सैद्धांतिक और पुराने रीति रिवाज वाले थे। इस हद तक कि वह जातिवाद के खिलाफ खुले रूप में नहीं बोल सकते थे 1920 में उन्होंने खुले में कहा था कि वह इंटरमैरिज और इंटर डाइनिंग को सपोर्ट बिल्कुल नहीं करते हैं उनका मानना था कि एक जनरल जाति का लड़का एक जनरल जाति की लड़की से ही शादी कर सकता है और यही विधि का विधान है यही सब प्राकृतिक है।

गांधीजी के विचार उन्हीं के शब्दों में " मैंने कभी किसी मुस्लिम व्यवसाई के साथ लड़ाई नहीं की है लेकिन इतने सालों में मैंने कभी किसी मुस्लिम परिवार से फल के अलावा कुछ नहीं खाया"।

इत्तेफाक की बात थी कि गांधी के बेटे मणिलाल पति को एक मुस्लिम लड़की से प्यार हो गया और गांधीजी इनकी शादी के सख्त खिलाफ थे और इनकी शादी को होने नहीं दिया। लेकिन 1927 में फिर से उनके दूसरे बेटे एक दूसरी लड़की (लक्ष्मी नाम की) उससे शादी करना चाहते थे और गांधीजी इस के भी खिलाफ थे क्योंकि वह उनकी सेम जाति से संबंधित नहीं थी और बनिया ब्राह्मण की शादी गांधी जी सपोर्ट नहीं करना चाहते थे।

लेकिन बात यह स्पष्ट झूठ होगी अगर मैं आगे की कहानी आपको ना बताऊं लेकिन समय के साथ-साथ मेरा मतलब है कि जैसे जैसे समय आगे जाता गया गांधी जी की सोच में परिवर्तन आता गया और 1932 में उन्होंने अपनी राय बदल ली और अंतरजातीय विवाह को स्वीकार कर लिया गांधी जी ने माना कि वह पहले गलत थे उन्होंने कहा कि जो मैं अंतरजातीय विवाह के खिलाफ था वह हमारी समाज को और भी कमजोर बना रहे हैं।

गांधीजी का कहा गांधीजी की ही जुबानी में" दूसरे धर्म या दूसरी जात के साथ खाना खाना या शादी करना इस पर जो रुकावटें हैं वह हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं है। यह बात में हिंदू धर्म में आए शायद जब हिंदू धर्म अपने पतन की तरफ था आज के समय में ऐसी रुकावटें हिंदू समाज को कमजोर कर रही है"।

और इसी के साथ ही अगले ही साल गांधी के बेटे देवदास अंत में लक्ष्मी से शादी कर पाए और 1946 में बात कहां तक पहुंच गई कि गांधी जी ने कहा कि वह अपने आश्रम में किसी की भी शादी नहीं होने के लिए जब तक कि लड़का है या लड़की कोई भी एक हरिजन नहीं होगा।😂 उन्होंने यह भी कहा कि उनका बस चले तो वैसे भी लड़कियों को कहें कि वह एक हरिजन पति ढूंढे। दूसरी तरफ अक्टूबर 1935 में एक कॉन्फ्रेंस में डॉक्टर अंबेडकर ने खूलें रूप से स्वीकार कर दिया कि वह हिंदू धर्म को छोड़ना चाहते हैं

उनका कहना उन्हीं की जुबानी में " यह मेरा दुर्भाग्य था कि मैं अछूत के कलंक के साथ पैदा हुआ था। मेरे पैदा होने में मेरा तो कोई दोष नहीं है लेकिन यह जरूर मेरे पावर में है कि मैं हिंदू रहते हुए नहीं मरने वाला"

शुरुआत में तो उन्होंने बताया था कि वह सिख धर्म में बदलेंगे लेकिन कुछ कारणों की वजह से उन्होंने इस में परिवर्तन नहीं किया और बाद में में बुध धर्म में परिवर्तित हो गए और अगर आप डॉक्टर अंबेडकर के बारे में ज्यादा जानना चाहते हैं तो आप डॉक्टर अंबेडकर के बारे में एक किताब है जो कि एनीहिलेशन ऑफ कास्ट बाई डॉक्टर अंबेडकर और यह किताब आप पढ़ सकते हो।

कुल मिलाकर अगर हम बात करें जो कि सबसे बड़ी डिसएग्रीमेंट यानी कि असहमति महात्मा गांधी और अंबेडकर के बीच में है वह है सेपरेट इलेक्टरेट।
इसका मतलब है कि देश में ऐसी चुनाव क्षेत्र होंगी जहां पर सिर्फ एक स्पेशल जाति का इंसान ही खड़ा हो सकता है इलेक्शन लड़ने के लिए और वोटिंग के लिए भी सिर्फ उसी स्पेशल जाति या धर्म के लोग वोट डालने जा सकते हैं।

आज के दिन क्या होता है अलग-अलग चुनाव क्षेत्र होती है और आप अपने अपने मेंबर ऑफ पार्लियामेंट के लिए वोट डालते हैं और आपकी चुनाव क्षेत्र में जितने भी लोग रहते हैं सब वोट डाल सकते हैं जो कि 18 साल से ऊपर है। लेकिन जो कि अलग निर्वाचन क्षेत्र हैं।

इसमें एक खास समुदाय का ही मान लो कि अगर कोई सिक्ख है या मुस्लिम या क्रिश्चन खडा है, तो सिर्फ उसी जाति धर्म के लोग उसे वोट डाल सकते हैं। अपने निर्वाचन क्षेत्र में बाकी लोग वोट भी नहीं डाल सकते। अब मैं आपको एक इंटरेस्टिंग फैक्ट बताता हूं यानी की रोचक बात 1909 में ब्रिटिश राज के अधीन गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ने मुस्लिम लीग को अलग चुनाव की इजाजत दी। इंडिया में इसके तहत मुस्लिम लोग ही खड़े होंगे और मुस्लिम इन को वोट देंगे और अगर हिंदू लोग खड़े होंगे तो हिंदू लोग इन को वोट देंगे और 1919 में क्रिश्चियंस को एंगलो इंडियंस को यूरोपियन और सिखों को भी अलग-अलग इलेक्ट्रोल मिले।

इंडिया में बात यह है कि डॉक्टर अंबेडकर सेपरेट यानी कि अलग इलेक्ट्रो रेट चाहते थे दलित लोगों के लिए लेकिन गांधीजी के सख्त खिलाफ थे। 1931 में जो राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस हुई लंदन में वहां पर गांधी जी ने जाकर ब्रिटिश सरकार के सामने अपनी डिमांड रखी। उन्होंने कहा कि एस्पर्श लोग भी हिंदू हैं और उन्हें माइनॉरिटी स्टेटस नहीं मिलना चाहिए और उसी समय वे यह भी चाहते थे कि मुस्लिम और क्रिश्चियन सब सब लोगों के लिए जो अलग-अलग सेपरेट इलेक्ट्रो रेट दिए गए हैं उन्हें हटा दिया जाए।

लेकिन दूसरी तरफ अंबेडकर चाहते थे कि दलित को भी माइनॉरिटी जाने की कम संख्या वाले डिक्लेअर किया जाए। इंडिया में और उन्हें भी अलग-अलग चुनाव सीटें प्रदान की जाएं आपको क्या लगता है। वैसे किसकी सुनी होगी आंसर बड़ा सिंपल है - उत्तर बड़ा आसान है और ब्रिटिश लोगों का आपको पता ही है वह डिवाइड एंड रूल पॉलिसी खेलते थे 1932 में ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर रामसे मैकडोनाल्ड ने एक कम्युनल अवार्ड की घोषणा की और उन्होंने कहा कि माइनॉरिटी जिनकी संख्या कम है उनको वहीं रूल लागू रहेंगे यानी कि जिनकी संख्या कम है उनके अलग प्रतिनिधि होंगे और सिर्फ उन को ही वोट डाल सकते हैं और उन्होंने यह भी कहा कि दलित आप अलग माइनॉरिटी माने जाएंगे और दलितों को भी अब अलग-अलग चुनाव के अधिकार दिए जाएंगे और गांधी जी को यह बात बिल्कुल भी पसंद नहीं आई।

गांधीजी का मानना था कि किसी भी टाइप के अलग चुनाव की वजह से देश की अखंडता को बहुत चोट पहुंचेगी और देश अखंड नहीं बन सकता और इसलिए गांधीजी बैठ गए एक अनशन पर फास्ट उंटो डेथ यानी कि वर्त जब तक की मृत्यु ना हो जाए। डॉक्टर अंबेडकर बहुत परेशान थे इसको लेकर एक तरफ वह अपनी बात मनवाना चाहते थे। लेकिन दूसरी तरफ देख रहे थे अगर गांधी जी को सही में कुछ हो जाता है। तो इसे दलितों की इमेज भी खराब हो सकती है। तो डॉक्टर अंबेडकर और गांधीजी में एक स्टोरी एक ऐतिहासिक समझौता किया यहां पर जिसका नाम है पूना पैक्ट।

आपने स्कूल की किताबों में पढ़ाई होगा कि डॉक्टर अंबेडकर और गांधी ने बैठकर एक समझौता किया था दोनों अपनी पोजीशन से एक स्टेप नीचे उतरे और जॉइंट इलेक्टोरेट्स करने का फैसला किया। यानी कि कोई भी व्यक्ति खड़ा हो और कोई भी उसे वोट दे दे सके। डॉक्टर अंबेडकर ने गांधीजी को कन्वेंस किया। अपनी डिमांड को लेकर उन्हें चिंता थी कि अगर जॉइंट इलेक्ट्रोरेट होंगे तो जो मेजॉरिटी कम्युनिटी है यानी कि जिनकी संख्या ज्यादा है। वह अपना कोई भी एक नौकर जैसा दलित खड़ा कर देंगे उसे जिताने के लिए और इस प्रॉब्लम को अवार्ड करने के लिए डॉक्टर अंबेडकर और गांधी दोनों ने कहा कि हम एक परी इलेक्शन करेंगे जिसमें सिर्फ एक दलित वोट कर सकता है और दलित को 4 कैंडिडेट को सुनेंगे और उन 4 कैंडिडेट्स में से एक कैंडिडेट को चुना जाएगा।

जब सारे लोग सपोर्ट करेंगे तो साथ ही साथ जो कुल सीट थी चुनाव के लिए वह 78 थी और अंबेडकर ने गांधी से रिक्वेस्ट की इन को बढ़ा दिया जाए और यह 148 सीटें कर दी गई। 

और अब हम अगर राजनीति को छोड़कर अन्य मूवमेंट की बात करें तो वहां पर एक बहुत बड़ा कॉन्ट्रिब्यूशन रहा है डॉक्टर अंबेडकर का। इनकी सिद्धांत बहुत ही सिंपल था की एडिकवेट ओर एजुकेट इसका बहुत बड़ा एग्जांपल है सन 1947 का महाद सत्याग्रह।

यह क्या था यह था महाराष्ट्र में एक नगर पालिका है - महाद। जहां पर यह अपने लोगों को लेकर वहां पर पानी पीने गए तब पहुंच गए और उन्होंने पानी पी तो लिया। लेकिन बहुत से हिंदू तब उनके खिलाफ थे और वहां पर एकदम से अफरा-तफरी का माहौल हो गया था और पुलिस को वहां बीच में घुसपैठ करनी पड़ी और इन्हीं उच्च वर्ग के हिंदुओं ने बाद में कुछ वॉटर टैंक को शुद्ध करने के लिए कुछ दूध, दही जैसी चीजें भी डाली और इसी के साथ डॉक्टर अंबेडकर ने और उनके फॉलोअर्स में एक कैंपेन भी जारी किया मनुस्मृति को जलाने की।

मनुस्मृति एक प्राचीन हिंदू ग्रंथ है जिसके अंदर जाति वगैरा के बारे में लिखा हुआ है और सभी जाति के रोल उस में लिखे हुए जब उन्होंने यह किया उसे मनुस्मृति दहन दिवस के रुप में मनाया जाता है। एक और इनकी बड़ी प्रसिद्ध आंदोलन रही जोकि नासिक में दलितों के अंदर जाने के बारे में दी और यह एक मंदिर था वहां पर दलितों को अंदर जाने की मनाही थी। तो उन्होंने मार्च की थी एक वहां पर इसके खिलाफ।

वह फ्रेंच रिवॉल्यूशन के आईडिया से भी बहुत ज्यादा इंस्पायर थे लिबर्टी यानी की आजादी समानता और अखंडता। व उन्होंने मैं सिर्फ इन चीजों को संविधान में लिखा बल्कि प्रस्तावना में भी इन चीजों को लिखा है और इन्हीं बातों का जिक्र उन्होंने महद सत्याग्रह में भी किया है।

चलिए डॉक्टर अंबेडकर की जुबानी पड़ते हैं कि उन्होंने क्या कहा है " यह केवल पीने के पानी के लिए नहीं है पानी से हमें ज्यादा कुछ लेना देना नहीं है। हम लड़ रहे हैं पानी पीने के अधिकार के लिए। लेकिन यह लड़ाई केवल हमारे मानव अधिकार की लड़ाई नहीं है। हमारा मकसद फ्रांस क्रांति से कम नहीं है। यह क्रांति माहिती समाज के पुनर्निर्माण के लिए जो असमानता और आजादी लेने के लिए और आसमानता के खिलाफ है"

हम इन सभी सिद्धांतों को याद करके चलते हैं। लेकिन हम इनको असल जिंदगी में अपनाने के लिए डरते हैं और वैसे तो यह हर एक देश के संविधान में हमेशा से ही रहे हैं। अमेरिका जैसे देश को ही देखिए। जब उनका संविधान लिखा गया तो उसमें समानता नामक शब्द कहीं भी नहीं लिखा गया और ना ही उनमें ब्लैक्स के लिए समान राइट थे। ना ही औरतों के लिए वोटिंग कराई था और करीबन 75 साल लगे अमेरिका को अपने संविधान में यह जोड़ने में की नौकर गुलामी को खत्म किया जाए।

एक और बहुत बड़ी अचीवमेंट डॉक्टर अंबेडकर की रही है जो कि डॉ जवाहरलाल नेहरू के साथ मिलकर हिंदू कोड बिल लाने की। यह हिंदू औरतों के लिए काफी आगे बढ़ाने वाला कदम है जो कि उनकी सामाजिक जीवन जीवन में मदद करता है। अभाग्य से उस समय यह बाकी धर्मों के लिए नहीं आ पाया कुछ कारणों की वजह से लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड।

जिसकी बात करी जाती है उम्मीद है कि ऐसे ही प्रोग्रेसिव रिफॉर्म्स हर धर्म में लाएंगे। आज के दिन दोस्तों में से हर कोई डॉक्टर अंबेडकर के विचारों से बहुत कुछ सीख सकता है।

अगर हम उन्हें सही मायने में श्रद्धांजलि देने जाते हैं तो हमें आजादी समानता के सिद्धांत ग्राउंड पर सही मायने में लागू करने पड़ेंगे। क्योंकि हम सब जानते हैं कि ग्राउंड पर आज के दिन भी नहीं यह नहीं दिखाई देता है और अंतरजातीय विवाह अंतर धर्म विवाह आज के दिन भी स्वीकार नहीं किए जाते हैं।

लोग आज के दिन भी कितना दूर भागते इन सब से। यह तो एक ऐसी चीज है जिस पर गांधी जी और डॉक्टर अंबेडकर अंत में एक दूसरे से सहमत हो गए थे कि हमें समाज को और अखंड बनाना है और अगर हम समाज को कल बनाना चाहते हैं तो हमें अंतरजातीय और अंतरधर्म शादियों को स्वीकार करना पड़ेगा। उम्मीद करना हो आपको यह ब्लॉक जानकारी भरा लगा होगा और अगर आपको पसंद आए हो तो आप अपनी राय कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं। मिलते हैं अपने ब्लॉग में।

 बहुत-बहुत धन्यवाद ।
    जय हिंद 🇮🇳🇮🇳
~Sachin Dabodiya 

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